शेयर बाजार में सफलता की ओर कदम:- शेयर चुनने की 10 कसौटियाँ

"निवेश के मामले में स्मार्ट चयन: शेयर बाजार में सफलता के लिए दस महत्वपूर्ण तरीके" शेयर चुनने की 10 कसौटियाँ 



जीवन के यात्रा में, हमें कभी-कभी सीधे रास्ते नहीं मिलते। चुनौतियों की बौछार में हमें अपनी क्षमताओं को खोजना होता है और आत्म-समर्पण के साथ आगे बढ़ना होता है। इस लेख में हम जानेंगे कि  शेयर को केसे चुना जाये कैसे अगले चरण की ओर बढ़ने के लिए उच्चतम स्तर की तैयारी कैसे करें और कैसे खुद को एक नए अध्याय की शुरुआत के लिए प्रेरित करें।"इस आर्टिकल में हम शेयर चुनने के  10 महत्वपूर्ण तरीके के बारे में जानेगे 

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  1. पी.ई. रेशो (Price/Earning Ratio) का मतलब 
  2.  ग्रुप पोजीशन
  3. बुक वैल्यू
  4. डिविडेन्ड 
  5. ऑर्डर बुक की स्थिति भी शेयर को चुनने का एक महत्वपूर्ण आधार है
  6.  करेन्ट रेशो 
  7. ऑपरेटिंग मार्जिन
  8. 52 वीक हाई/लो
  9. कैशफ्लो/रिजर्ज     

अगर आप शेयर बाजार में निवेश करना चाहते हैं, तो सबसे पहले तो आपको कंपनी चुननी होगी। शेयर बाजार में बहुत सारी कंपनियाँ हैं, सवाल यह है कि आप आप कि किस कंपनी के शेयर खरीदें, ताकि आपकी पूँजी भी सुरक्षित रहे और आपको लाभ भी हो। 

वेबसाइटों (www.moneycontrol.com, www.lcicidirect.com) और निवेश पत्रिकाओं (दलाल स्ट्रीट) में आपको दर्जनों कंपनियों के शेयर खरीदने  की सलाह मिल जाएगी। आपको बहुत सारी कंपनियाँ आकर्षक लगती हैं और आपका मन होता है कि आप उन सबको खरीद डालें। बहरहाल, चूँकि आपकी पूँजी सीमित है, इसलिए आप हर दिन दर्जनों शेयर नहीं ब्ररीद सकते हैं। जैसा पिछले अध्याय में बताया गया है, आपके पोर्टफोलियो में आम तौर पर 10 से ज्यादा कंपनियों नहीं होना चाहिए।

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सही कंपनी का चुनाव शेयर बाजार में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि आपका नफा-नुकसान सेंसेक्स के उतार-चढ़ाव से नहीं, बल्कि कंपनी के शेयर के भाव से जुड़ा होता है। कंपनी को बहुत सावधानी से चुनें। 

यह ध्यान रखें कि अच्छी कंपनियों का पोर्टफोलियो बनाना ही सबसे मुश्किल काम होता है। शेयर खरीदने और बेचने का काम तो बहुत आसान होता है। किसी कंपनी को उतनी ही सावधानी से खरीदें, जितनी सावधानी से आप अपने लिए मकान खरीदते हैं। उसके हर पहलू को बारीकी से देखें, उसके गुण-दोषों का विश्लेषण करें, उसकी संभावनाओं को अच्छी तरह से टटोल लें। उसकी बैलेंस शीट और परिणामाँ का अध्ययन करना न भूलें।


अगर आपका लक्ष्य दीर्घकालीन निवेश है, तो शुरुआत में सिर्फ प्रतिष्ठित कंपनियों को ही चुनें, जिनके पास सफलता का पुराना रिकॉर्ड हो। आम तौर पर ऐसी कंपनियाँ बी. एस.ई. के ए समूह में आती हैं। आप सेंसेक्स की 30 कंपनियों या निफ्टी की 50 कंपनियों  में से भी कंपनी चुन सकते हैं, क्योंकि ये सभी कंपनियों बहुत ही सुदृढ़ और प्रतिष्ठित हैं। कंपनी चुनते समय आपको लोभ में नहीं फँसना चाहिए। शेयर बाजार से आप क्या चाहते हैं, यह लक्ष्य अपने दिमाग में स्पष्ट रखें। यह बात कभी न भूलें कि आपका लक्ष्य एक माह में अपना पैसा दोगुना करना नहीं है, बल्कि सामान्य से ज़्यादा दर पर ब्याज कमाना है।


कंपनी का चुनाव करते समय निम्न बातें बहुत महत्वपूर्ण होती हैं, हालाँकि यह भी याद रखें कि किसी एक कसौटी के आधार पर ही शेयर चुनना समझदारी नहीं है और भविष्य की संभावनाओं पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। जब कंपनी कई कसौटियों पर खरी उतरे, तभी उसके शेयर खरीदना अच्छा होता है। 


शेयर चुनने की दस कसौटियों ये हैं:



1 पी.ई. रेशो :  किसी शेयर को चुनते समय पी.ई. रेशो (Price/Earning Ratio) पर सबसे पहले ध्यान देना चाहिए। पी.ई. रेशो शेयर के भाव (price) और कंपनी की प्रति शेयर आमदनी (earnings per share) या ई.पी.एस. का अनुपात बताता है। 

मान लीजिए, स्टील एथॉरिटी ऑफ इंडिया (सेल) के शेयर का भाव 48 रुपए है और उसका ई.पी.एस. 16 रुपए है, तो इसका पी.ई. रेशो 3 होगा। 

पी.ई. रेशो का मतलब यह है कि आप जिस भाव पर शेयर ब्ररीद रहे हैं, कंपनी आपके शेयर पर उतने रुपए कितने सालों में कमा सकती है। अगर पी.ई. रेशो 3 है, तो इसका मतलब यह है कि कंपनी अगर इसी गति से प्रगति करती रहे, तो वह 3 साल में आपके शेयर पर उत्तने रुपए कमा सकती है।

 आम तौर पर कम पी. ई. रेशो वाली कंपनियाँ दीर्घकालीन दृष्टि से ज़्यादा अच्छी मानी जाती हैं। बहरहाल, यह भी याद रखें कि पी.ई. रेशो कम होने का एक कारण यह भी हो सकता है कि उस कंपनी का पुराना रिकॉर्ड तो अच्छा है, लेकिन उसकी भविष्य की संभावनाएँ धूमिल हैं। बहुत अच्छी कंपनियों का पी.ई. रेशो तुलनात्मक रूप से ज्यादा होता है, क्योंकि उनकी विकास दर (growth rate) ज्यादा होती है। पी.ई. रेशो का ऐतिहासिक अध्ययन जरूरी है। हर सेक्टर की कंपनी का आदर्श पी.ई. रेशो अलग-अलग होता है।


हाई-टेक कंपनियों, फार्मा कंपनियों और एफ.एम.सी.जी. कंपनियों का पी.ई. रेशो आम तौर पर ज्यादा होता है, क्योंकि उनके विकास की दर या ग्रोथ रेट ज्यादा होती है। सॉफ्टवेअर कंपनी इन्फोसिस का पी.ई. रेशो 38 है, टी.सी. एस. का पी.ई. रेशो 36 है, फार्मा कंपनी डॉ. रेड्डीज का पी.ई. रेशो 47 है और हिंदुस्तान लीवर लिमिटेड का पी.ई. रेशो 36 है। इसी तरह उन कंपनियों का पी.ई. रेशो भी ज़्यादा रहता है, जिनके विकास की दर ज्यादा होने की संभावना होती है, जैसे भारती टेली का पी. ई रेशो 29 है। दूसरी तरफ, मेटल, ऑइल इत्यादि सेक्टरों की कंपनियों का पी.ई. रेशो काफी कम होता है। 

उदाहरण के लिए, टाटा स्टील का पी. ई रेशो 5.6 है, स्टील एयॉरिटी ऑफ इंडिया का पी.ई. रेशो 13.4 है, चेन्नई पेट्रोलियम और बोंगाईगाँव रिफाइनरी के पी.ई. रेशो 5 के आस-पास हैं। इसी तरह, सार्वजनिक उपक्रमों यानी पी.एस.यू. सेक्टर के पी.ई. रेशो भी आम तौर पर कम होते हैं, जैसे ओ.एन.जी.सी. और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया का पी.ई. रेशो 11 है तथा शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया का पी.ई. रेशो 3.6 है।


पी.ई. रेशो एक नजर में तस्वीर सामने रख देता है। इसे देखते ही आप यह जान जाते हैं कि किसी कंपनी का शेयर कंपनी की आमदनी की तुलना में कितना महंगा है और इसे कितने मूल्य पर खरी ब्ररीदना उचित होगा। एकोनॉमिक टाइम्स या दलाल स्ट्रीट में में कंपनियों के पी.ई. रेशो दिए रहते हैं। । बहरहाल, यह न भूलें कि पी.ई. रेशो हर। दिन बदलता है, क्योंकि शेयर के भाव हर। दिन बदलते हैं। इसके अलावा, कंपनी के तिमाही या वार्षिक परिणामों से भी पी.ई. रेशो बदलता है।


2 .ग्रुप पोजीशन : ग्रुप पोजीशन का मतलब यह है कि अपने ही सेक्टर की बाकी कंपनियों की तुलना में

किसी कंपनी की क्या स्थिति है। उदाहरण के लिए स्टील सेक्टर में टाटा स्टील लीडर है, यही कारण है कि इसके शेयर का भाव थोड़ा ज्यादा होगा, लेकिन इसे खरीदना ज्यादा सुरक्षित भी रहेगा। जब आपको कोई सेक्टर आकर्षक लग रहा हो, तो सेक्टर की अग्रणी कंपनी के शेयर खरीदना हमेशा अच्छा होता है, क्योंकि उसकी विकास दर ज़्यादा होने के कारण उसके शेयर के भाव ज्यादा बढ़ते हैं। इसके अलावा, चूंकि वह कंपनी अपने सेक्टर में अग्रणी होती है, इसलिए उसके शेयर के भाव ज़्यादा समय तक गिरे नहीं रहते हैं। 

आई.टी.सी. रिलायंस, ओ.एन.जी.सी., टाटा स्टील, बी. एच.ई.एल. इत्यादि कंपनियों अपने सेक्टर में लीडर हैं।


3.बुक वैल्यू : किसी कंपनी के शेयर चुनते समय बुक वैल्यू का भी ध्यान रखना चाहिए। बुक वैल्यू का मतलब यह है कि किसी कंपनी के पास प्रति शेयर कुल कितनी मूर्त संपत्ति (physical assets) है।

 उदाहरण के लिए, अगर बी.बी.सी. फेरो एलॉयज की बुक वैल्यू 345 रुपए है, जबकि इसके शेयर का भाव 150 रुपए है, तो इसका मतलब यह है कि कंपनी का शेयर खरीदने लायक है, क्योंकि कंपनी के पास शेयर के भाव से दुगुनी संपत्ति है। लेकिन ध्यान रहे, बुक वैल्यू सिर्फ कंपनी की मूर्त संपत्ति बताती है। 

हाई-टेक कंपनियों में बुक वैल्यू का कोई ब्रास महत्व नहीं होता, क्योंकि इनकी प्रगति में मूर्त संपत्ति महत्वपूर्ण नहीं होती है। जो कंपनियाँ बहुत प्रतिष्ठित होती हैं, उनकी बुक वैल्यू अपेक्षाकृत कम होती है, जैसे हीरो होंडा की बुक वैल्यू 57 है, जबकि इसके शेयर का भाव इससे पंद्रह गुना ज्यादा है। बहरहाल, सामान्य नियम यह है कि बुक वैल्यू जितनी ज़्यादा हो, उतना ही अच्छा होता है।


4.डिविडेन्ड :- हर साल डिविडेन्ड देने वाली कंपनियों के शेयर ब्ररीदना लाभकारी होता है, क्योंकि डिविडेन्ड पर टैक्स नहीं लगता है और डिविडेन्ड एक तरह से व्याज का काम करता है। सभी प्रतिष्ठित कंपनियों डिविडेन्ड देती हैं और अधिकांश सफल कंपनियों तो साल में दो बार डिविडेन्ड देती हैं। ब्रास तौर पर सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों ज्यादा डिविडेन्ड देती हैं, क्योंकि सरकार उनमें सबसे बड़ी हिस्सेदार होती है, इसलिए वह उनसे ज़्यादा डिविडेन्ड की माँग करती है, ताकि उसका बजट घाटा कम हो जाए। इन कंपनियों में निवेश करने से डिविडेन्ड का ज्यादा लाभ होता है, हालाँकि इनके शेयर का भाव निजी कंपनियों जितनी तेजी से नहीं बढ़ता है। निष्क्रिय निवेशक शेयर चुनते समय डिविडेन्ड का विशेष ध्यान रखते हैं, क्योंकि वे बाजार में बार-बार ख़रीद- फरोख्त करने में रुचि नहीं रखते हैं।


5 ऑर्डर बुक :- कंपनी की ऑर्डर बुक की स्थिति भी शेयर को चुनने का एक महत्वपूर्ण आधार है। अगर कंपनी की ऑर्डर बुक भरी है यानी कंपनी के पास अगले कई सालों के लिए पर्याप्त ऑर्डर हैं, तो यह माना जाता है कि कंपनी की हालत बहुत अच्छी है और बह भविष्य में बहुत तरक्की करेगी, क्योंकि उसे अपना माल या सेवाएँ बेचने की कोई कोशिश नहीं करनी पड़ेगी। इस मामले में बी.एच.ई.एल., एल. एंड टी., नागार्जुन कंस्ट्रक्शन्स इत्यादि कंपनियों बहुत आगे हैं, जिनके पास अगले कई साल की ऑर्डर बुक भरी हुई हैं।


6. करेन्ट रेशो : कंपनी की आर्थिक स्थिति कैसी है, यह भी शेयर चुनते समय बहुत महत्वपूर्ण होता है। इसके लिए यह जानना जरूरी है कि उसकी लिक्विडिटी कैसी है, यानी वह अपने आर्थिक दायित्वों को पूरा करने में कितनी समर्थ है। अगर कंपनी अपने खर्च उठाने में समर्थ नहीं है, तो उसे अपनी महत्वपूर्ण संपत्तियाँ    बेचना पड़ सकती हैं और आगे चलकर वह दिवालिया भी हो सकती है। करेन्ट रेशो से यह जाँचा जाता है कि कंपनी की वर्तमान संपत्तियाँ इसके आगामी एक वर्ष के दायित्वों को पूरा करने के लिए पर्याप्त हैं या नहीं। आदर्श स्थिति में करेन्ट रेशो 1 के आसपास होना चाहिए। यह ज़्यादा कम नहीं होना चाहिए, हालाँकि प्रतिष्ठित कंपनियाँ कई बार इस अनुपात को जान-बूझकर कम रखती हैं, ताकि वे अपनी संपत्ति का प्रभावकारी उपयोग या निवेश कर सकें।

 7. ऑपरेटिंग मार्जिन : किसी भी बिजनेस में मार्जिन बेहद महत्वपूर्ण होता है, हालाँकि आम तौर पर उसकी तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता है। इस तरह की खबरें आम हैं कि हालाँकि इस वर्ष बिक्री 10 प्रतिशत बढ़ी, लेकिन निर्माण लागत बढ़ने के कारण मुनाफा कम हो गया। इसका कारण यह है कि मार्जिन घट गया। मार्जिन का सीधा  सा मतलब यह है कि कंपनी एक यूनिट सामान बेचने पर जितना लाभ कमाती है, वह घट रहा है या बड़ रहा है। मार्जिन जितना ज्यादा होगा, कंपनी को उतना ही ज्यादा लाभ होगा।


मार्जिन इतना महत्वपूर्ण है कि कई: बार तो इसी से कंपनी की सफलता या असफलता तय होती है। निर्माण बढ़ने पर मार्जिन कम हो जाता है। जब कंपनी अपने सामान की कीमत बढ़ाती है, तो उसका मार्जिन बढ़ जा अगर कंपनी के सामान की अच्छी माँग है, तो कंपनी उसकी कीमत बढ़ाकर अपने मार्जिन को बरकरार रखत लेकिन अगर कंपनी के सामान की माँग ज्यादा नहीं है, तो यह कीमत नहीं बढ़ा सकती है, इसलिए इसका मा कम हो जाता है।

8. बिक्री/लाभ में प्रति वर्ष वृद्धि: किसी कंपनी का शेयर खरीदते समय उसके पिछले रिकॉर्ड की  जाँच भी करना चाहिए। अगर कंपनी की बिक्री और लाभ हर वर्ष बढ़ रहे हैं, तो उस कंपनी को विश्वसनीय माना ज सकता है। यह न भूलें कि अच्छी कंपनियों का रिकॉर्ड अच्छा होता है। अगर पाँच साल का रिकॉर्ड बताता है कि कंपनी की बिक्री और लाभ हर साल बढ़ रहे हैं, तो यह विश्वास किया जा सकता है कि वह भविष्य में भी प्रगति करेगी।


9. 52 वीक हाई/लो : 52 वीक हाई/लो का मतलब यह होता है कि किसी शेयर का वर्ष में सबसे ऊँचा नीचा भाव क्या रहा।

 कई दीर्घकालीन निवेशक शेयर ब्ररीदते समय इसे बहुत महत्वपूर्ण मानते हैं और 52 वी लो के आस-पास शेयर खरीदना पसंद करते हैं। अगर किसी कंपनी के शेयर का भाव 52 बीक हाई पर है, तो इसका मतलब यह है कि इसके शेयर की माँग काफी है और इसका भाव पहले ही काफी बढ़ चुका है। दूसरी तर अगर किसी कंपनी के शेयर का भाव 52 वीक लो पर है, तो इसका मतलब यह है कि इसके शेयर के भाव इस स के सबसे निचले बिंदु पर हैं। 

वैसे तो इसके कई कारण हो सकते हैं, लेकिन अच्छी कंपनियों के मामले में इसका कारण अक्सर यह होता है कि शेयर बाजार में वह सेक्टर इस समय लोकप्रिय नहीं है। 52 वीक लो के आस-पास अच्छी कंपनियों के शेयर खरीदने से लाभ की संभावना बढ़ जाती है, बशर्ते आप दीर्घकालीन निवेशक हों। हो सकता है अल्प काल में इस नीति से आपको ज़्यादा लाभ न हो, क्योंकि किसी भी सेक्टर को दोबारा लोकप्रिय होने में समय लगता है।


10. कैशफ्लो/रिजर्ज अगर किसी कंपनी का कैशफ्लो अच्छा है, तो उसके शेयर खरीदना अच्छा होता है। अच्छे कैशफ्लो का मतलब यह है कि कंपनी को बिजनेस से न सिर्फ अच्छी आमदनी हो रही है, बल्कि वह बचत भी कर रही है। ।  कैशफ्लो वाली कंपनियों अच्छा डिविडेन्ड देती हैं, शेयर बाई-बैंक करती हैं, को खरीदती हैं और पूँजी की कमी उनके व्यापार के विस्तार में कभी आड़े नहीं आती है। दूसरी कंपनियों

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